आयुर्वेद ज़्यादा तेल से तौबा Why does Ayurveda say to avoid excess oil?Where there is moderation, there is health -

 आयुर्वेद क्यों कहता है ज़्यादा तेल से तौबा करें?

- जहाँ संयम है, वहीं स्वास्थ्य का संगम है -

भारतीय रसोई घरों में तेल की महक केवल स्वाद नहीं लाती, बल्कि भावनाओं की भी परतें खोलती है। गरमा-गरम पराठे, सब्ज़ी में तड़का, और त्योहारों के पकवान इन सबमें तेल एक अहम भूमिका निभाता है। लेकिन यही तेल जब हद से ज़्यादा हो जाए, तो यह स्वाद से ज़्यादा रोग का कारण बन सकता है।


आयुर्वेद में तेल को 'स्निग्ध' तत्व माना गया है, यानी वह जो शरीर को चिकनाई, ऊर्जा और पोषण देता है। लेकिन यही स्निग्धता अगर 'अतिस्निग्ध' बन जाए, यानी ज़रूरत से ज़्यादा, तो यह दोषों को बिगाड़ देती है खासकर कफ और पित्त दोष को।

आयुर्वेद तेल को क्यों सीमित मात्रा में खाने की सलाह देता है?


1. जठराग्नि को धीमा करना

तेल की अधिकता शरीर की जठराग्नि को मंद कर देती है -यानी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इससे भोजन अच्छे से नहीं पचता और 'आम' (विषैले अपचित तत्व) बनता है।

2. कफ दोष में वृद्धि

बहुत ज़्यादा तले हुए व भारी तेलीय पदार्थ कफ को बढ़ाते हैं, जिससे नज़ला, खांसी, एलर्जी, वजन बढ़ना और आलस्य जैसे लक्षण पैदा होते हैं।

3. शरीर में रुकावट

अधिक तेल से शरीर की नाड़ियाँ (सूक्ष्म ऊर्जा वाहिकाएं) चिपचिपी होकर अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे रक्तसंचार में बाधा और जोड़ों में जकड़न महसूस हो सकती है।

4. मन और मस्तिष्क पर प्रभाव

तेल की अधिकता मानसिक सुस्ती, नींद में बढ़ोत्तरी और निर्णय क्षमता में गिरावट ला सकती है जिसे आयुर्वेद 'तमोगुण' की वृद्धि मानता है।

आयुर्वेद में सरसों तेलः

सरसों तेल को आयुर्वेद में 'उष्ण' प्रकृति का माना गया है, जो वात और कफ को नियंत्रित करता है।

इसमें 'तिक्त' और 'कटु' रस होता है, जो शरीर की गहराई तक जाकर दोषों को संतुलित करता है।

गुणकारी तत्वः

सरसों तेल में ओमेगा-3, ओमेगा-6, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन-E प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

यह शरीर को उत्तेजित करता है, त्वचा में नमी लाता है और बालों के लिए भी लाभकारी है।

अत्यधिक सेवन के नुकसानः

सरसों तेल में 'इरुसिक एसिड' (uric acid) नामक तत्व होता है, जो अधिक मात्रा में हृदय पर प्रभाव डाल सकता है।

अधिक गर्म तासीर के कारण यह पेट में जलन और त्वचा पर चकत्ते जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।

ऋतु और तेल का संबंध

तेल का 'सही उपयोग' ही असली इलाज है

कितना तेल खाना चाहिए?

आयुर्वेद के अनुसार, हर व्यक्ति के शरीर, मौसम, उम्र और पाचन क्षमता के अनुसार तेल की मात्रा तय होनी चाहिए। एक औसत वयस्क के लिए दिन में 2-3 चम्मच तेल पर्याप्त होता है।

कैसे खाएं?

ताजा, कम तापमान पर पका हुआ खाना जिसमें हल्की मात्रा में सरसों या तिल का तेल प्रयोग किया गया हो, उत्तम माना जाता है।

दिन में एक बार तला हुआ खाना चलेगा, लेकिन इसे दिनचर्या न बनाएं।

किन्हें बचना चाहिए?

मधुमेह (डायबिटीज), मोटापा, उच्च रक्तचाप, पाचन समस्या वाले लोगों को तले और ज्यादा तेलयुक्त भोजन से परहेज़ करना चाहिए।

सरसों के तेल के तथ्यः

किटाणुनाशक - सरसों का तेल न केवल खाना पकाने में बल्कि त्वचा रोग, संक्रमण और जख्मों के लिए प्राकृतिक एंटीबायोटिक की तरह काम करता है।

तेल की मालिशः सर्दियों की मालिश में सरसों का तेल इस्तेमाल होता है। आयुर्वेद मानता है कि सरसों का तेल वात दोष को शांत करता है और हड्डियों को मज़बूत बनाता है।

•खाने में सरसों का तेल सरसों तेल की प्रकृति 'उष्ण' (गर्म) मानी जाती है। इसलिए यह शरीर को भीतर से गर्म रखता है और सर्दी-खांसी, जुकाम, वातजन्य दर्द में अत्यंत लाभकारी होता है।

•वजन घटाने में छुपा सहयोगी सरसों तेल में मौजूद मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड (MUFA) शरीर की चर्बी को संतुलित करता है।

•बालों और स्किन के लिए नेचुरल टॉनिक सरसों का तेल स्कैल्प को पोषण देता है, बालों को झड़ने से रोकता है और सफेद होने की प्रक्रिया को धीमा करता है।

•सरसों तेल में डीप फ्राइंग हाई स्मोक पॉइंट (250°C के आसपास) की वजह से यह डीप फ्राइंग के लिए उपयुक्त माना जाता है। परंतु रोजाना डीप फ्राई खाना स्वास्थ्य के लिए सही नहीं - खासकर हृदय रोग और हाई कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों के लिए।


निष्कर्षः "तेल ज़रूरी है, लेकिन सीमा में ही सेहत है।"आयुर्वेद कभी भी तेल को नहीं नकारता बल्कि उसे एक औषधि की तरह मानता है। परंतु जब स्वाद के चक्कर में हम मात्रा का संतुलन भूल जाते हैं, तो वही औषधि धीरे-धीरे ज़हर बन जाती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बाल झड़ने की समस्या और आयुर्वेदिक उपचार (Hair Fall in Ayurveda)

Ayurvedic knowledge

Knowledge of Ayurveda